सरल कहानी – 1. कपड़े की पूजा
एक गाँव में एक गरीब स्त्री रहती थी । वह अपने पति के साथ गरीबी में जिंदगी बसर करती थी । उसके चार छोटे-छोटे बेटे थे । ज्यों-त्यों करके बेचारी अपना पेट पालती थी । उसी गाँव में उसका भाई रहता था । वह बड़ा धनी-मानी था, मगर अपनी बहन की कभी पूछ-ताछ नहीं करता था । अपने ही घमंड में चूर रहता था ।
एक दिन भाई ने भंडारा करने का इरादा किया । गाँव में सब लोगों को न्योता दिया, लेकिन बहन को नहीं बुलाया । दोपहर में भोजन शुरू होने वाला था । बहन को लगा- इतने बड़े काम में भाई न्योता देना भूल गया होगा । सब लोगों को जाते देखकर बच्चे भी हठ करने लगे, इसलिए वह बच्चों को लेकर भाई के यहाँ गई । थालियों में भोजन परोसा गया । सब लोग खाने को बैठे, तो बहन भी बच्चों को लेकर बैठ गई । इतने में भाई वहाँ पहुँचे। उनका ध्यान अपनी बहन की ओर गया, जो फटे-पुराने कपड़े पहनकर आई थी । भाईसाहेब उसके पास आए और धीरे शांती से बोले, “बहन तुम्हारे पास खुदके न तो अच्छे गहने हैं, और ना हि अच्छे कपड़े। तुम्हारी ओर देखकर लोग मेरी हँसी उड़ाते हैं । खैर ! आज आ गई, सो ठीक है । कल फिर न आना ।
” बेचारी दुखी होकर घर लौट गई । दूसरे रोज बच्चे कहने लगे ” माँ, चलो न मामा के घर । देखो कितने लोग वहाँ जा रहे हैं ।”बहन ने सोचा, भाई नाराज हुआ, तो आखिर है तो अपना ही भाई । हम सब गरीब हैं । गरीब को गरीब कहने में अपमान समझनेकी क्या बात है? वह फिर गई और बच्चों के साथ खाने बैठी।भाई ने देखा, तो वह आग बबूला हो गया । गुस्से में आकार डॉटकर बोला, “कलमुंही कहीं की । एक बार कह दिया, तो भी नहीं समझी । बेशरम, चल यहाँ से ।” ऐसा कहते हुए भाई ने उसका हाथ पकड़कर बच्चों के साथ उसे निकाल दिया ।
उस बात को कई दिन हो गए । सब दिन होत न एक समान । बहनके दुखके दिन चल गए । उसकी सारी तकदीर खुल गई । उसके पति का सम्मान अब धनी-मानी लोगों में होने लगा । एक साल भाई के लड़के का जनेऊ आया । अब की बार बहन को आग्रह के साथ बुलाया । उसने कहा, “तुम न आओगी तो मुझे दुख होगा, सब समारोह फीका हो जाएगा ।” बहन ने आना कबूल किया । वह दूसरे दिन कीमती गहने और कपड़े पहनकर भाई के यहाँ गई । भाई ने बड़ी इज्जत के साथ उसे अपने पास बिठाया । भोजन परोसा गया ।
भोजन शुरू हुआ । भोजन शुरु होते ही बहन ने दुपट्टा उतारकर उसे एक तरफ रख दिया । उसने बिंदा, झुमके, नथ, सोने का हार, मोतियों की माला, अंगूठी, कंगन, करधनी, पायल आदि सब गहने उतारकर रख दिए । भाई को लगा- इसे गहनों का बोझ होता होगा । फिर बहन ने जलेबी का एक टुकड़ा दुपट्टे पर रख दिया । दूसरा कान के झुमके पर, तीसरा सोने के कंगन पर । इस तरह एक-एक गहने पर उसने मिठाई रखना शुरू किया ।
यह देखकर भाई अचंभे में आ गया । उसने पूछा, “जीजी, तुम यह क्या करती हो ? तुम खाती क्यों नहीं?” “मैं उन्हीं को खिलाती हूँ, जिन्हें तुमने आग्रह से न्योता दिया है । मेराभोजन तो उसी रोज हो चुका, जिस दिन तुमने मुझे भरी थाली पर से उठा दिया था ।
आज का भोजन मेरे गहनों के लिए है।” बहने ने हँसते-हँसते जवाब दिया। भाई शरम के मारे पानी-पानी हो गया । उसने बहन से क्षमा माँगी । वादा किया कि फिर ऐसा कभी नहीं करूंगा । दीन हो या धनी, सब से एक तरह का बरताव करुंगा।बहन उदार थी । वह समझ गई कि अब भाई की आँखें खुल गई हैं। उसे पछतावा हुआ है। उसने माफ कर दिया । फिर दोनों ने अच्छी तरह से भोजन किया ।
संदेश -हर एक को सुख दुःख की स्थिती का सामना करना पडता है। इसलीए किसीं का उसके बुरे काल मे मजाक नही उडाना चाहीए।